आज मै
पत्थरों के शहर में
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
रहता हूँ चार दिवारी मे घिरा
खुले असमान से हो कर जुदा
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
पत्थर ही पत्थर दिखते हैं
हर नये नये आकार में वो सजते हैं
रंग रूपंण भी उनका खूब होता है
ऊँचे ऊँचे दम पर वो बिकते है
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
मै भी बिका हुआ हूँ शायद
चूना सीमेंट रेत से पोता हुआ हूँ
अपने कोने से घिरा हुआ हूँ
दस आकार दस में बिछा हुआ हूँ
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
दर्द जब उभरता है
बस आसूं के नाम पर पत्थर कंण रिसते हैं
दिल को छुपा कर रखा है कंही
उसके धड धड ने पत्थर ना धडक जाये कंही
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
रहता हूँ चार दिवारी मे घिरा
खुले असमान से हो कर जुदा
पत्थरों के शहर में
मै भी एक पत्थर
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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