मै चोर हूँ
जिगरा है कंहा सब कुछ छुपा हुआ
पन्ना खुला फिर भी सब कुछ मिटा हुआ
कैसा खेल है ऐ पहले से मै हरा हुआ
साफ सुथरी छवी मेरी बाहर से
अंदर चोर छुपा हुआ
मै चोर हूँ
देश को लुटा है मैंने
कंहा कंहा छुपा कर रखा है मैंने
घपला किया है बड़ा फिर भी तना हूँ मै
झुक नहीं हूँ मै उठा खडा हों मै
होगी दो चार दिन तमाश
बाद मै फिर घपलों से जुडा हूँ मै
मै चोर हूँ
किसी ने लिखा नहीं हाथ मै
पकड़े जाने बाद भी खुला हूँ मै
अपंगों से चोरी की मैंने पदनोती का हकदर हूँ मै
लुट लुटकर कैसा भरा हूँ
आंखों मै काला चश्मा डालकर
सबसे अब तक बचा हूँ मै
मै चोर हूँ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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