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तुम्हरी याद आती है जब


तुम्हरी याद आती है जब 

तुम्हरी याद आती है जब 
अक्सर अच्छा लगता है चुप रहना 
आपने आप से यूँ ही अकेले में यूँ कहना 
आँखों से कहना ओर कानो से बस सुनना 
धडकनों का है जो धीरे धीरे चलना 
अक्सर अच्छा लगता है चुप रहना 

तुम्हरी याद आती है जब 
खोने पाने का अहसास होते रहना 
सुख दुःख का साथ यूँ ही मिलते रहना 
अनुभूती होती रहती है उस प्यार की
उस अकेली ओर अकेले इन्तजार की 
अक्सर अच्छा लगता है चुप रहना 

तुम्हरी याद आती है जब 
रफ्तार नब्ज के उतार ओर चढ़ाव की
संतुलन की सीमा परे उस जज्बात की 
अक्समत में उभरे उस विचार की 
बड़ बोले उस कथन और करनी की 
अक्सर अच्छा लगता है चुप रहना 

तुम्हरी याद आती है जब 
घूमता ही रहता है वो अपने साथ ही 
कहना चाहता है वो भी कई बात भी 
मुँह खोल भी देता है वो तेरे साथ कभी 
आ जाती तेरी याद यूँ ही पास मेरी 
अक्सर अच्छा लगता है चुप रहना 

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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