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कंहा चला


कंहा चला 

सुख की ओर भाग रहे
दुःख स्वयं ओढ़ रहे है 
कैसे समझाओं मै उन्हें 
पीछे क्या छोड़ रहे हैं 

श्रणिक सुख के संग 
अलोकिक देह छेद रहे हैं
कंकड़ अपने पर तोल कर 
रिश्तों पर मोल कर रहे हैं 

कर्म के पथ पर हम 
स्तविक पथ क्यों छोड़ रहे है 
अर्थ अब वंचित है कया का 
मोह माया को ओढ़ रहे हैं 

अकेल चला था तू अब 
अकेला ही यंहा से जायेगा 
तेरा किया धरा ही तेरे संग 
अब योनी योनी वो आयेगा 

सुख की ओर भाग रहे
दुःख स्वयं ओढ़ रहे है 
कैसे समझाओं मै उन्हें 
पीछे क्या छोड़ रहे हैं 

एक उत्तराखंडी 
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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