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दीपावली कविता मेरी


दीपावली कविता मेरी 

दीपावली कविता मेरी
जगमग जगमग जगमगाती है
रंगोली के रंगो में मुझे मिला जाती है 
कंही बम कंही दीप जलाती है 
द्वार पर तोरण से मुझे बुलाती है 
दीपावली कविता मेरी

कंही उजाला कंही अंधियारा छ्या
सबको एक नजरों से मैंने कंहा पाया 
भूख से मिठाईयों के लिये वो रोती है 
गरीबी में अकेले आंखे भीगोती है 
एक दीप के लिये रोशनी तड़पती है 
दीपावली कविता मेरी

लम्हें जिन्दगी के गलियारे में 
प्रतीक्षा एक दिवाली खड़ी है सदियों से 
कब मिटेगा ऐ अंतर मन मेरे 
कब हर द्वार कम से कम एक दीप तो जलेगा 
तब जाकर मेरे कविता दीपवली मनायेगी 
दीपावली कविता मेरी

दीपावली कविता मेरी
जगमग जगमग जगमगाती है
रंगोली के रंगो में मुझे मिला जाती है 
कंही बम कंही दीप जलाती है 
द्वार पर तोरण से मुझे बुलाती है 
दीपावली कविता मेरी

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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