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सिलवटें


सिलवटें 

आज जो बीत गया था 
कल क्या वो याद आयेगा 
बिस्तर पर पड़े सिलवटों पर
कोई वादा कर जायेगा 
दूर से वो मुस्कुरा रहा है 
देख वो आज भी याद आ रहा है 
लकीरों पर अब भी अपनी 
वो तक़दीर बता रहा है 
कुछ चुप है कुछ गा रहा है 
पल पल बिछड़ कर वो 
फिर करीब आ रहा है 
समा जो बंधा था अब तक
एक एक कर खुल रहा है 
रहा वो अनजानी सी थी 
वो मौसम फिसल रहा था 
अपना आज भी वो लगा 
टूटकर उस पलंग से जो गिरा है 
फिर भी वो इस सीने से लगा 
दिल अब भी वो धडक रहा है 
नाम फिर भी छुप रहा है 
आज जो बीत गया था 
कल क्या वो याद आयेगा 

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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