बंजारा सवेरा
फिरता रहा कारवॉं
लंबी दौड़ाती सडकों पर
सुबह शाम मेरा
सफर तेरे साथ हुआ
काफ़िर बन गया हूँ
शगिर्द हूँ मै तेरा ही
बंजारा दिन गुजारा
रात देदो अब सहारा
तप तपाती तपन तपसी
अब रूठी दूर बैठे छोटी
उजालों से हुआ किनार
अंधेरों ने फिर पुकारा
दो घड़ी सुस्ता मै जरा
आँखों ने दिया मुझे बसेरा
अचानक नींद टूटी मेरी
फिर दिखा बंजारा सवेरा
फिरता रहा कारवां
लंबी दौड़ाती सडकों पर
सुबह शाम मेरा
सफर तेरे साथ हुआ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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