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राहत


राहत 

राहत ही नही है 
सुख चैन खोया है 
उभड़ी हुई नक्काशी 
पत्थरों के दिल पर 

आँख प्यासी है 
कोई मन्ज़र दे दे
तेरी हर बात मोहब्बत 
मेँ गवारा करके 

चाहत और राहत की लड़ी पर 
आंसुओं की झड़ी लगी जैसे 
तेरी सदा की वफाओं में 
राहत मांगी थी हमने 

खुदा राहत न मिली 
कुछ नज्में कुछ गजल लिखकर 
ठह ठहके ठुमके लगाये 
उस महफिल दमन पर 

आंसुओं की झड़ी
होंठों पर तैरती मुस्कान लेकर 
अजनबी ख्वाहिशें को 
सीने में दबा भी न सकूँ

राहत ही नही है 
सुख चैन खोया है 
उभड़ी हुई नक्काशी 
पत्थरों के दिल पर 

एक उत्तराखंडी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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