
एक एक रात्री को मेरी नींद टूटी और लिखने बैठा गया क्या हूँ मै
क्या हूँ मै
लगे हैं सब के सब खोने में
पाने को कौन खडा है आज यंहा
सिमटने में लगे है सब के सब यंहा
हाथ फिर भी सबके खाली यंहा
ना समझ तू ना मै भी समझ अब तक
फिर भी लगा बस तू खोने में
अकेले में किस के लिये रोने में
जन्मा था जब सब खुश थै मै बस रोया
क्या उस वक्ता पता था मुझे मै कंहा आया
खोया बस तब से उस पल को उस कल से
जुदा जुदा होती रही हर सांस इस जां से
फिर भी लगा बस तू खोने में
अकेले में किस के लिये रोने में
समीप समीप चला जा रहा हूँ मै कंही
मै समझ रहा हूँ क़ी मै पा रहा हूँ यंही
जो कुछ है यंही का यंही रहा जायेगा
क्या मेरे क्या तेरे साथ यंहा से जायेगा
फिर भी लगा बस तू खोने में
अकेले में किस के लिये रोने में
जाती धर्म तू यंहा आके बस अब पायेगा
दो शब्द नाम तेरा उसमे ही तो रहा जायेगा
लड़ाकर जीवन भर जीवन से क्या पायेगा
आखिर में खुद से पूछना क्या हूँ मै
फिर भी लगा बस तू खोने में
अकेले में किस के लिये रोने में
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी

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