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कुछ बाकी है




कुछ बाकी है 

अब भी दिन बाकी है 
हाथ मेरे लाठी है 
देखों दूर बूढी नजरों से 
जो थोड़ी उम्र अब बाकी है 
अब भी दिन बाकी है 
हाथ में मेरे लाठी है 

यही वो गाँव है 
वो ही अब भी मै हूँ 
कभी खेला था इन खलिहानों में 
बचपन खोजों यंहा 
इन कच्ची पगडंडीयों में 
अब भी दिन बाकी है 
हाथ में मेरे लाठी है 

कोई नही आज यंहा 
खाली खाली ये वीरान जंहा
किसान अब परेशान यंहा 
खोजें दाना वो शहर शहर 
अब भी लगा हूँ ताक मै 
अब भी दिन बाकी है 
हाथ में मेरे लाठी है 

आयेगी वो प्रभात कभी तो 
मेरे मरने से पहले 
या मेरे मरने के बाद 
लोटेंगे मेरा वो अपने 
पूछेंगे मेरे अश्रु उन हाथ 
जिन हाथ पकड़कर मै 
घूमता था दिन रात 
अब भी दिन बाकी है 
हाथ में मेरे लाठी है 

अब भी दिन बाकी है 
हाथ मेरे लाठी है 
देखों दूर बूढी नजरों से 
जो थोड़ी उम्र अब बाकी है 
अब भी दिन बाकी है 
हाथ में मेरे लाठी है 

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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