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भाव है मेरे


भाव है मेरे 

ये भाव है मेरे इन्हें 
आप घाव ना समझना 
अक्सर ये आ जाते है 
कंही पर भी मुझे मिलने 
ये भाव है मेरे 

हल्का सा इशारा देकर 
कुछ हल्का हलक तपकर 
बंद करके रखी थी जो सीने में 
शीत उष्ण वो आग है 
ये भाव है मेरे 

भीगती वो रात 
जलते सूरज के लिये 
कदमों से चलकर आयी
चाँद के साथ तपकर
ये भाव है मेरे 

ग्रहण कर लेता हूँ 
मन धारण कर लेता हूँ 
बात सच्ची हो या कल्पना 
छंद कविता गजल रच देता हूँ 
ये भाव है मेरे 

ये भाव है मेरे इन्हें 
आप घाव ना समझना 
अक्सर ये आ जाते है 
कंही पर भी मुझे मिलने 
ये भाव है मेरे 

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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