चला चला
आया सूरज चला चला
दिन भी यूँ ही बढ़ चला
प्रहर पल पल चला चला
समय का कांटा बढ़ चला
चलते चलते संध्या आयी
थकन लगी सुस्ता चला
थोड़ा लुफ्ता उठाकर चला चला
एक रेखा की ओर में बढ़ चला
अँधेरा आया रात्री वो चला चला
सुख निद्रा तज कर बढ़ चाला
हर प्रहर मे यूँ ही बांटा रहा
चलना था बस यूँ ही चला चला
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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