क्ख्क रैगे
क्ख्क रैगे तू
तू क्ख्क हर्ची
छनी टूटी गै छे परसी
गोउड़ बलदा फिरदा सड़की
व्हैगै तू बस अब खरकी
क्ख्क रैग्याँ तू
तू क्ख्क हर्ची ...........
ओंझो बैरी छे
तू क्दगा गैरी छे
दुःख णी सरेनु मेरु
तू खैरी मेरी छे
व्हैगै तू बस अब सैरी छे
क्ख्क रैगे तू
तू क्ख्क हर्ची ...........
बांझों का बजरा
खेती पुंगडो दगड़
कैल णी छोडी कसर
पिच्गै पाणी गगर
व्हैगै तू बस अब सगर
क्ख्क रैगे तू
तू क्ख्क हर्ची ...........
क्ख्क रैगे तू
तू क्ख्क हर्ची
छनी टूटी गै छे परसी
गोउड़ बलदा फिरदा सड़की
व्हैगै तू बस अब खरकी
क्ख्क रैग्याँ तू
तू क्ख्क हर्ची ...........
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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