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चुपचाप खड़ी वो मेरी मसूरी



चुपचाप खड़ी वो मेरी मसूरी

शांतिपूर्वक बाट जोह रही है
सदियों से सब सह रही है वो

धीरे - धीरे आवाजें आती रही
एक दूजे से वो जा टकराती रही

आपस में वो बतियाती रही
मौन रहकर बस निहारती रही

नीची आवाज़ में वो कल-कल बहती रही
आंसूं सी नमकीन वो लगती रही

निस्तब्ध वो आवाज बहुत कुछ कहती रही
नीरव रही हरदम अकेली अखंड है जो

नीचे स्वर से शांत भाव का आगाज है वो
जो पहाड़ों की रानी है मेरी मसूरी मेरा उत्तराखंड

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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