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शांत विहल सा



शांत विहल सा

देख और कितना देखों
रंग बहारों का ऐ मन और कितना देखों
पल पल बदलती है तस्वीर
देख और कितना देखों.........................

ऐतबार और मेरी तक़दीर
उस पर ऐ दिल मजबूर और कितना मजबूर
कंही फसाना एकांत का कंही जमी मजलिस
देख और कितना देखों.........................

दीप की तरहं जलों और कितना जलों
या मोम की तरहं पिघल जाऊं
या फकत ताकता ही रह जाऊं
देख और कितना देखों.........................

जमीर की हालत तरस की दम कंहा रह गया
आँखों मे जज्बात इश्क और कितना इश्क
सरे आम वो बस अब वो लुटा रह जाये
देख और कितना देखों.........................

चुप चाप खडा वो चला जा रहा है कंही
दिल दिमाग कह रहा है ये ना तेरी मंजिल पर मंजिल कंहा है
बस शांत विहल सा ग़मगीन सफर गुजरा जा रहा है
देख और कितना देखों.........................


देख और कितना देखों
रंग बहारों का ऐ मन और कितना देखों
पल पल बदलती है तस्वीर
देख और कितना देखों.........................


एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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