ADD

किसी ना किसी बहाने



किसी ना किसी बहाने

फासले अब उनके करीब होने लगे
दूर रहकर भी हम उनके नजदीक होने लगे
फासले अब उनके ...................

चाँद को देखा करते थे
रातों को हम जाग कर उस छत से
खुद ही खुद से कहते थे
वो भी आ जायेंगे बादलों से लुक-छुपके
दूरियाँ दूरीयां ही रही नजदिकीयाँ ना बनी
वो चाँद भी खोता रहा बेवफा
हफ्ता हफ्ता भर ना जाने किधर
फासले अब उनके ...................

तन्हाईयों में तन्हा वो मेरे ही साथ थी
उनकी आँखों से उभरे वो आंसूं थे हम
फासले अब उनके ...................

दिये की रोशनी रातभर
वो उम्मीद को भी पिघलती रही
कभी हम मोम बनते रहे
कभी रात हमारे संग जलती रही
हवाओं पर भरोसा था इस कदर
वो भी बीच बीच में आती रही
दिल की अग्न को और भड़काती रही
फासले अब उनके ...................

अब तो अपनी ही उल्फतों में हम पास हैं
दूर ही सही किसी ना किसी बहाने हम साथ हैं
फासले अब उनके ...................

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ