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जब बाग़ में



जब बाग़ में

जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२
हमको को लगने लगा ,आप हमसे मिलने लगे
काटों सी वो दूरियाँ जो अब तक दिल में चुभी
आप देखते ही वो वो गुन-गुनाने लगे
जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२

फागुन में झूले पड़े देखा जब बागों में
याद आयी मुझको तुम उन ही राहों में
हाथों में मेरे होली गुलाल भरा पडा था
ना तुम आयी ना कोई खबर आयी तेरी
जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२

याद मैंने किया तुझको उन यादों में
साथ तुम भी आये थे साथ मेरे उन ख्वाबों में
आचनक मेरी आंख यूँ याद टूट गयी यादों में
ना तुम साथ थे ना ख्वाब अब साथ है
जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२

रुक्सते गम में यूँ दिले गम जुदा हुये
मैखाने में अब तू सुबह जवान हुई
पहले डर था तेरा डर था इन रातों का
अब फ़िक्र नही कंहा सुबह कंहा रात गई
जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२

आपको मिल गया सहारा उस शराब का
हमारा गुजार भी होता अब बस उस बात से
जो रातें गुजारी उस चाँद सितारे साथ थे
तब भी तुम नही थे अब भी वो ही साथ साथ हैं
जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२

जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२
हमको को लगने लगा ,आप हमसे मिलने लगे
काटों सी वो दूरियाँ जो अब तक दिल में चुभी
आप देखते ही वो वो गुन-गुनाने लगे
जब बाग़ में फुल खिलने लगे ..२

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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