रह गयी याद
रह गयी याद बस वो और बिछड़ा प्रेम अब साथ
कंठ गुंठित दबी सांसों में सहमी सी
रह गयी याद ..............
घर के चार दीवारों में चूनी हुयी
रंग रोपण चेहरे पर चूना लोपित खड़ी हुयी
रह गयी याद ..............
बैठी वो दबी दबी अकेले कहरा रही थी
अपने आप कुछ सुखे पत्तों के शोर के साथ
रह गयी याद ..............
इंतजार,तन्हाई दोनों आस पास बैठी थी
ना सुनी दिल ने ना दिमाग ने किसी की भी बात
रह गयी याद ..............
वो चले कदमो के निशान अब भी उभरे हैं
दिल पथ पर छोड़ तुम आगे बड़े ,हम वंही खड़े हैं
रह गयी याद ..............
खंडर सा वो वीरना है अब और गहरा सा हो गया है
वो जमाना हमारा तुम्हरी बस यादों में खो गया है
रह गयी याद ..............
रह गयी याद बस वो और बिछड़ा प्रेम अब साथ
कंठ गुंठित दबी सांसों में सहमी सी
रह गयी याद ..............
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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