मंजिलों की दौड़
एक लक्ष्य आगे खड़ा
खड़े एक दूजे के आमने सामने
जंग है या जिंदगी
मंजिलों की दौड़ है
सब लगे हैं दौड़ने...
लुट जो जात है
लुट वो जाये किसी शोर में
सब खड़े उस छोर में
मंजिलों की दौड़ है
सब लगे हैं दौड़ने...
दिन रात फ़िक्र वही
आपनो का वंहा जिक्र कंहा
काँटों भरी सपनो की वो सेज है
मंजिलों की दौड़ है
सब लगे हैं दौड़ने...
दौड़ा बस दौड़ लगी है
क्या पाने की वो होड़ लगी है
कोई नही उस ओर खड़ा
मंजिलों की दौड़ है
सब लगे हैं दौड़ने...
एक लक्ष्य आगे खड़ा
खड़े एक दूजे के आमने सामने
जंग है या जिंदगी
मंजिलों की दौड़ है
सब लगे हैं दौड़ने...
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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