बंजर है
कम पानी
से भरा अब मंजर है
धरा आज बंजर है
पिया कंही
जीया का खंजर है
धरा आज बंजर है
प्यास ही है अब
नमकीन बड़ा समन्दर है
धरा आज बंजर है
दरारें फ़ैली है
निगाहें टिकी दिल अंबर है
धरा आज बंजर है
लोक लाज
अपार आज अघात है
धरा आज बंजर है
देखे वो चले
दोहरी चाल का सिकन्दर है
धरा आज बंजर है
कम पानी
से भरा अब मंजर है
धरा आज बंजर है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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