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पहाड़ भी गायब है



पहाड़ भी गायब है

ओझल हो गये
वो अपना पन वो अपने
कंहा खो गये हैं
वो अपनों के सपने

पहाड़ भी गायब है
नदियाँ भी अब लुप्त हैं
हरयाली खो गयी है
कंहा जाकर वो सो गयी है

बुढी आँखों से बह रही
बस आँसूं की धार है
खाली खाली सा घर
मन सुहागन का आज है

बच्चों की आवाज में भी
बाबा शब्द बहुतांश मुख से
अनुउपस्थित क्यों आज है
माँ चेहरा फिर उदास आज है

ओझल हो गये
वो अपना पन वो अपने
कंहा खो गये हैं
वो अपनों के सपने

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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