ADD

अब भी वो पड़े हैं इन्तजार में


अब भी वो पड़े हैं इन्तजार में

फिर आज बड़े दिनों के बाद
आज फिर मैंने कलम थामी है
कोई रचना कोई नज्म जमी थी
उस टूटे और सूखे पत्तों पर
अब भी वो पड़े हैं इन्तजार में

उड़ रही धुल वंही पड़ी मजारों पर
रुक्सत हुये दरकत के रुक्सारों पर
कब्र पर छाये उन अंधेरों गलियारों पर
कभी जलते दीपक के उन किनारों पर
अब भी वो पड़े हैं इन्तजार में

देख रही है राह आयेगा कोई यंहा
चुन-चुनकर कोई यंहा से ले जायेगा
जो रचना नज्म जमी थी अब तक यंहा
इन अनजान सुनसान वीरानों पर
अब भी वो पड़े हैं इन्तजार में

फिर आज बड़े दिनों के बाद
आज फिर मैंने कलम थामी है
कोई रचना कोई नज्म जमी थी
उस टूटे और सूखे पत्तों पर
अब भी वो पड़े हैं इन्तजार में

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ