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दो आँसूं


दो आँसूं

फिर बह गये
दो आँसूं आँखों के
दर्द से थे जमे वे
ले कर गये वो कंहा
जिंदगी के आईनों पर
फिर बह गये वो कंही पर
फिर बह गये
दो आँसूं आँखों के

रोना था रो दिया
गम को हलक से हल्का कर दिया
रोते रोते वो सीसक सा गया
वो कोना और वंही पर रोना था
सब सम था सहम सा गया
बहना था वो बह गया
फिर बह गये
दो आँसूं आँखों के

कहना था उसे,वो कहता रहा
रो रो के दर्द बस वो सहता रहा
रोक रोक वो उभरता रहा
पग अपना रखा वंहा पर उसने
जग जंहा पर उसे ठगता रहा
बोझा दिल का ठेला दिल ने
दिल पर इसका रोग बड़ता रहा
फिर बह गये
दो आँसूं आँखों के

फिर बह गये
दो आँसूं आँखों के
दर्द से थे जमे वे
ले कर गये वो कंहा
जिंदगी के आईनों पर
फिर बह गये वो कंही पर
फिर बह गये
दो आँसूं आँखों के

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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