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कशमकश


कशमकश

कैसी कशमकश है
क्या प्रेम ही सर्वपरी है
दिल की बस इतनी दिल्लगी है
बस फिरता गली गली है
कैसी कशमकश है .......................

अपने तक ही रहता
क्यों वो सब कुछ अकेले सहता है
गुमनाम राहों की वो बंदगी है
जुदाई ही वो अलबेली सहेली है
कैसी कशमकश है ........................

ना वो इस दुनिया का ना दीन का
ऐ किस्सा है ना राम का ना रहीम का
धुल उड़ती राहों की वो तक़दीर है
फकीरों के लिये तन्हाई ही भीड़ है
कैसी कशमकश है ........................

अपने में ही खोया रहता है
सपने में ही वो अब सोया रहता है
जुदा अब वो अपने खुदा से भी
उस एक चेहरे पर ही फना रहता है
कैसी कशमकश है ........................

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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