दूर ही रहा
जीवन में था
पर जीवन से दूर ही रहा
अलग बनने की सनक
अपनों से दूर ही रहा
पाने की लालसा ,सब खो दिया
सपनों से दूर ही रहा
कर ना था कुछ जीत के लिये
पर हार से दूर ही रहा
देखता रहा मै सब कुछ
पर मै बोलने से दूर ही रहा
पत्थर की तरहं पड़ा रहा
पुजने से दूर ही रहा
जीवन में था
पर जीवन से दूर ही रहा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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