बिधातन जो लिखी छ्या
वो हमुल इन आंख्युं देख्याली
अपरू अपरु मा ही लग्युं गढ़
वैल इन हाथों न धोयाली
बिधातन जो लिखी छ्या...................
कर्म त अपरा ही छा
भग्या नी बस रेघा खिंचयाली
जो अबै तक उमड़यूँ छा बादल
वैल जीयु भोरीक पोडयाली
बिधातन जो लिखी छ्या...................
अपरा ना जाण अंजाणा भी
कैथे भी ना वैल पैछाणाली
कालू झोल सी ये वो ,छे वो
बस माटी मौल वैल कैर्याली
बिधातन जो लिखी छ्या...................
बस वो दिख्या जाता दूर तक
वो वैका रेघा खिंच्या खिंच्या
आंसूं का वो धार मेरा छुटयाँ
जो इन आंख्युं से छा पड़यां
बिधातन जो लिखी छ्या...................
बिधातन जो लिखी छ्या
वो हमुल इन आंख्युं देख्याली
अपरू अपरु मा ही लग्युं गढ़
वैल इन हाथों न धोयाली
बिधातन जो लिखी छ्या...................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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