दो दिन का मेला लगा है
दो दिन का मेला लगा है इस गुलिस्ताँ में !
क्या तेरा यंहा लगा है क्या मेरा यंहा लगा हुआ !!
भूल गया है तू यंहा आ के सब कुछ !
ये तेरा ठीकाना नही मेरा ठिकाना में लगा है !!
पत्थरों पे यूँ सजा के खुद का मकबरा !
शहेनशाह ये आजम बन अदम तन रहा है !!
फितरत रही तेरी सदा यूँ अबुदाने में !
फकीर का चोला था तू उसे धोने में लगा है !!
धर्म की दीवार लटकी है तेरे सीने में यूँ !
तू कुछ पाने में नही बस खोने में लगा है !!
दो दिन का मेला लगा है इस गुलिस्ताँ में !
क्या तेरा यंहा लगा है क्या मेरा यंहा लगा हुआ !!
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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