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अहम को जब


अहम को जब

अहम को जब चोट लगती है तब
उसे मूल्य किसका भी नही रहता
टूट जात है इस कदर वो
शून्य सा वो हो जाता
अहम को जब.........

ठेस इतनी हल्की होती है
उसका पर सब कुछ हिल जाता
आपा खो देता है खुद से
स्वंय का बोध नही रहता
अहम को जब.........

अहसास अचानक मर सा जात है
वो निर्जीव मात्र शरीर रहता
प्राण रहते है बस तन में
मन कंही जा सो जाता
अहम को जब.........

गिरती है दामीनी जैसे धरा पर
उस धरा में बाद में कुछ नहीं रहता
खिल भी जाये गर उस धरा पर पुष्प
पर सुगंध नही वो बिखेरता
अहम को जब.........

अहम को जब चोट लगती है तब
उसे मूल्य किसका भी नही रहता
टूट जात है इस कदर वो
शून्य सा वो हो जाता
अहम को जब.........

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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