लाशों में बैठा हूँ
कोई तो अपना होगा
दुनिया से जो गया होगा
उसने ना सोचा होगा
लाशों में बैठा हूँ ..................
लगता है वो यंही है
पड़े है निर्जन जीव
साथ उठ बैठेगा वो इस आस में
लाशों में बैठा हूँ ..................
जल जो रहा है आज
कल जो जल में बहा था
इतने दिन जो दबा था
लाशों में बैठा हूँ ..................
मुक्त है क्या वो आज
उठ रहा रह रहकर सवाल
ये क्या होना था उनके साथ
लाशों में बैठा हूँ ..................
कोई तो अपना होगा
दुनिया से जो गया होगा
उसने ना सोचा होगा
लाशों में बैठा हूँ ..................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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