नज्म जमी है
नज्म जमी है
कुछ तो कमी है
खल रही है आज वो
जो बहती नदी है
नज्म जमी है .................
आसमान रोया
किसी ने अपना खोया
बहते बहाव धार में
आज दूर वो खडी है
नज्म जमी है .................
आँखों को अब रोग लगा
इंतजार का दो जोड़ लगा
आस है की वो अब भी बंधी है
टूटे शाख से वो जा जुडी है
नज्म जमी है .................
धुंद अब जा जमा
कोइ अनंत के कोहरे में छुपा है
कोई है वंहा जल रहा लकड़ीयों पर
कोई यंह वंह सड़ रहा है
नज्म जमी है .................
वक्त है बस दिखा रहा है
चुप चाप वो चला जा रहा है
तेरी करनी तेरे पथ आयी है
ऐनक जो तू अपना छुपा रहा है
नज्म जमी है .................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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