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मै नदी हूँ


मै नदी हूँ

नदी हूँ मै
पहाड़ों से बही हूँ मै
हिमखंडों से निकली हूँ
झर झर झरनों में बही हूँ मै
नदी हूँ मै। ………………

स्वछंद था मेरा मन
कंही अवरुद ना था मेरा पथ
बही जंहा जंहा से मै
खुशी बांटी वंहा वंहा पे मैंने
नदी हूँ मै। ………………

अल्हड़ मेर वेग
होना था सागर से मेल
अचानक कंहा से ये दीवार आयी
उसके चुंगुल में खुद को कैद पाई
नदी हूँ मै। ………………

बदले उसने मेरे पथ अनेक
कर दिये उसने मेरे राहों को भेद
आँखों में वंहा पर अब आंसूं बोला
मेरा वेग हाहाकार बन डोला
नदी हूँ मै। ………………

एक दिन मै पुन्:
इन बंधी बेड़ियों को तोड़ जाऊँगी
स्वछंद मन होकर
क्या इन पहाड़ों से बह पाऊँगी
नदी हूँ मै। ………………


एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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