अपरा मन की
अपरा मन की
प्रशंसा सुणा ना कुन
बौल्या कंन हर्षाणू छ
किले तू तप्राणु छा
अपरा मन की……….
बुरंशी की डाली
जणी फुल जाणू छा
कुलै डाली जणी
किले वा लजाणु छा
अपरा मन की……….
घुघूती के घूरे
जणी घुर घुराण छा
गद्नीयुं की बगती धारा
जणी ऐ धार वे धार जानू छा
अपरा मन की……….
बौल्या रख बिसबास
क़ू त आलू तेरु पास
करणा कुन तेरु
कर्मा कू बखान
अपरा मन की……….
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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