अब पन्नो में ही
अब पन्नो में ही देखेंगे हम
अक्षरों में ही खिलेंगे हम
मिलना होगा अब हमारा
रद्दी के ढेरों में ही मिलेंगे हम
अब पन्नो में ही देखेंगे हम। ………………
कुछ गजल कुछ रचनायें
याद तुम्हे जब आयेंगी
उस मुख के बोल बनेंगे हम
उन आँखों संग डोलेंगे हम
अब पन्नो में ही देखेंगे हम। ………………
सोचा था और क्या हुआ
लिखा मेरा बस लिखा ही रहा
सोचा था दो किनारों का जोड़ बनेंगे हम
पतझड़ में फुल से खिलेंगे हम
अब पन्नो में ही देखेंगे हम। ………………
अब धुल से मिले है हम
कागज के फुल से खिले हम
काँटों ही काँटों का ताज है
फुटफाट में ही हमारा राज है
अब पन्नो में ही देखेंगे हम। ………………
अब पन्नो में ही देखेंगे हम
अक्षरों में ही खिलेंगे हम
मिलना होगा अब हमारा
रद्दी के ढेरों में ही मिलेंगे हम
अब पन्नो में ही देखेंगे हम। ………………
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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