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बदलते चेहरों का


बदलते चेहरों का

बदलते चेहरों का मौखोटा लगा के बैठा हूँ
हर एक शय पर अपनी नजर गड़ा के बैठा हूँ
बदलते चेहरों का मौखोटा लगा के बैठा हूँ…….

किस किस पर मै अपनी उंगली उठाऊं
हर एक इल्जाम को मै अपने सर मड़ा के बैठा हूँ
बदलते चेहरों का मौखोटा लगा के बैठा हूँ…….

हर एक नजर उठती है मेरी तरफ अक्सर
अंधेरों में मै अपनी नजरों को झुकाये बैठा हूँ
बदलते चेहरों का मौखोटा लगा के बैठा हूँ…….

वफ़ा , बेवफा के इस समन्दर में ये खाविंद
मै अपनी होंसलों की कश्ती डूबा के बैठा हूँ
बदलते चेहरों का मौखोटा लगा के बैठा हूँ…….

बस इतनी सी इल्तजा है इस ज़माने से
ना कर ना तुम गिला मेरे ऐसे जाने का
बदलते चेहरों का मौखोटा लगा के बैठा हूँ…….

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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