रक्त लहूलुहान
रक्त की लकीर खिंची है
जंहा गिरा था मै
वंहा रक्त लहूलुहान था …….
आया था वो काल बनकर
अँधेरा कंही से छुपकर
वंहा रक्त लहूलुहान था …….
देश था मेरा मैंने जवाब दिया
धराशयी हो कर मै वंही गिरा
जंहा रक्त लहूलुहान था …….
एक पल था गुजर गया
अब भी मै वंही पड़ा
रक्त लहूलुहान था …….
रक्त की लकीर खिंची है
जंहा गिरा था मै
वंहा रक्त लहूलुहान था …….
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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