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मेरी बेटी


मेरी बेटी

हर एक नारी यंहा पर

किसी की बेटी
किसी की बहन
किसी की पत्नी
किसी की माँ
किसी की सास
किसी की दादी

फिर भी क्यों अबला

वो है मेरी बेटी
आये जो घर में मेरे
खुशियों से भर जाये
पापा की आंखें तर जाये

फिर भी ना बनी सबला

वो बहना मेरी
आँखों के तारों सी वो लड़ी
बस रखी की थी वो घड़ी
तू बस उस दिन कलाई पर चड़ी

फिर भी तेरी आंखें छली

पत्नी बन साजन संग
खिले परिवार बने मधुबन
एक जोड़ा जोड़ जाये वो
तू है तो ये मोड़ा लाये वो

फिर भी अकेली तुझको पाये

माँ शब्दों सात्विक आनंद
ममता का वो सुंदर मिलन
दुखों को छोडी डोर को
बांधे सुखों की गठरी की ओर वो

फिर भी मन रहे बैचेन

सास बन जाये तो वो
आस और जग जाये
छोड़ा था उसने वो जो मन
कैसे छोड़ों रसोई का संग

फिर भी सवाल उपजे ये बदन

दादी की आँख है
हर पल बन ऐनक साथ है
अब भी बेटी की नही
दादी को बस पोते की आस है

अब कब बदलेगी ये धारण
कब आयेगी ये जन चेतना
बेटी भी है घर का सरताज
करें अपने घर से शुरवात है


एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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