मै अपना लिखा
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
जीवन रेत पर अपना अक्स खुद से ही छुपाता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
तकदीरों को खुद झुठला देता हूँ
उन रेखाओं के साथ घिसता और मिटाता जाता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
बैठा हूँ दूर उनसे हो के खफा मै अकेले
पर उनसे दूर कंहा मै हो पाता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
बिछड़ गयी है वो डगर मुझ से दूर जाकर
फिर उस डगर पर सुस्त कदम साथ चला जाता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
यादों में रोता रहता हूँ अक्सर अकेले में मै
उन यादों को मै भूल जाना चाहता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
चलती है एक आस हर पल यूँ ही साथ मेरे
कोई तू है हर वक्त जो साथ मेरे रहता है
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
दिल ना मानाने को मजबूर करता है हरदम
पर उस कोने से वो भी अछुता रह जाता है
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
जीवन रेत पर अपना अक्स खुद से ही छुपाता हूँ
मै अपना लिखा खुद ही मिटाता हूँ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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