स्थाई अस्थाई
स्थाई अस्थाई बाटों मा
बिरडी रै ग्याई रे छुचा
अपरी राजधानी
क्ख्क हर्ची गे रे
क्ख्क लुकी गैनी
उत्तराखंड आन्दोलन कू बिचार
कंन और्री कब व्हाली
प्रगति मेरा गढ़देश कि
बैठ्युं छों त्यूं ढंडियूँ पार
सुप्निया फुर उड़े नी
कै घार ऐ चकुला गैनी
ऊँ का च आच ना वार ना पार
उकालू और्री ऐ उंदरु मा
कदगा गैरु व्हैगे ऐ भारु
उठे नि सक्दा ना अटेगे सकदा
स्थाई अस्थाई बाटों मा
बिरडी रै ग्याई रे छुचा
अपरी राजधानी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ