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मैंने जो भी लिखा था


मैंने जो भी लिखा था

मैंने जो भी लिखा था
उसे अपने दिल से लिखा था
महसूस किया था मैंने …...२
मुझसे जो महरूम हुआ था
मैंने जो लिखा था ………………

दर्द है कि बहता ही रहा
जमाने ने जिसे अश्क कहा था …...२
आंखों से गिरता ही रहा वो जो मुझसे दूर हुआ था
मैंने जो भी लिखा था ………………

वो बेरुखी तेरी बनी बे-तकलिफ मेरी
महफ़िलों ने तेरी मेरे विरानो का समा बाँध रखा था …...२
पर शाहनाई रोती ही रही , शायद उसको मेरे गम का पता था
मैंने जो भी लिखा था ………………

पछतावा कुछ भी नही हुआ उसे
उसके हंसी चेहरे पर ये लिखा हुआ था …...२
वफ़ा मगर मैं करता ही रहा उससे जिसने मुझे बेवफा कहा था
मैंने जो भी लिखा था ………………

मैंने जो लिखा था
उसे अपने दिल से लिखा था
महसूस किया था मैंने …...२
मुझसे जो महरूम हुआ था
मैंने जो भी लिखा था ………………

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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