मगर
मगर
ऐसा ना होता
किन्तु
अकेले ना तनता
फिर भी वो
परिभाषित है
खोज अब भी
बाकी है
तो भी
अभी
जब तक न
या सिवाय बिन
बचा यदि है
वो बड़ भागी है
न कि है वो
बस घडि़याल
अश्रु बाकी है
तो भी
अभी
लुटेरा है
डाकू है वो
मुंह बनानेवाला
कोई मनुष्य है वो
छोड़ तेरा क्या
अब भी बाकी है
तो भी
अभी
मगर
ऐसा ना होता
किन्तु
अकेले ना तनता
फिर भी वो
परिभाषित है
खोज अब भी
बाकी है
तो भी
अभी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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