वो मेरा रूठा
अब भी मेरा हाल बिलकुल वैसा ही है
जैसे छोड़ा गया था तू मुझे जिस हाल में
अब भी आस है तेरे आने कि मुझको बड़ी
रोज आके बैठा जाता हूँ उस पगडंडी मैं
देखता हूँ रोज जाते पग को तेरे मुझसे दूर
अब सोचता हूँ मैंने उस समय क्यों ना रोका तुझे
तड़पता रहता है हरदम वो मासूम चेहरा तेरा
दिल पर असर कर गया मेरे इस तरह जाना तेरा
मै तो बाप हूँ मै किस तरह भी जी लूंगा
तेरी माँ का उदास चेहरा मुझसे अब देखा ना गया
वो तो रो देती है अपना गम हल्का कर लेती है
मै कंहा जाऊं अपना गम हल्का करने तू बता
हाँ मैंने दो बांते गर्म में कह दी तुझसे जरा
इस तरह तेरा घर छोड़कर कर जाना क्या ठीक था
जो भी बोला बेटा तेरी उसमे भलाई छुपी थी
थोड़ा चुप हो लेता उस समय तू ऐसा होता ना था
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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