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वो हालते मेरी


वो हालते मेरी

हालत कि क्या बात करूँ
सुबह करूँ वही शाम करूँ

पायदान शिखर का पाने को
दिल रोज ही तड़पता रहा

ग़ालिब का शेर अकेले
याद आ कर गुनगुनाता रहा

सफर छाँव ने झुलसा दिया
अंदाजा मेरा झुठला दिया

आती रही कदम दर कदम
तकलीफ मेरी मौत के करीब

परेशानी उस हाल में भी
मुझे आ कर गुदगुदाती रही

फिर भी ये हालते जिंदगी
मुझे देखकर मुस्कुराती रही

बस वो लड़ती रही ,लड़ती रही
वो हालते मेरी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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