वो हालते मेरी
हालत कि क्या बात करूँ
सुबह करूँ वही शाम करूँ
पायदान शिखर का पाने को
दिल रोज ही तड़पता रहा
ग़ालिब का शेर अकेले
याद आ कर गुनगुनाता रहा
सफर छाँव ने झुलसा दिया
अंदाजा मेरा झुठला दिया
आती रही कदम दर कदम
तकलीफ मेरी मौत के करीब
परेशानी उस हाल में भी
मुझे आ कर गुदगुदाती रही
फिर भी ये हालते जिंदगी
मुझे देखकर मुस्कुराती रही
बस वो लड़ती रही ,लड़ती रही
वो हालते मेरी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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