आ जा आना है तो
आ जा आना है तो
तू खुलकर आना पास मेरे
बांध ले जाना मुझे
मुझको मुझसे दूर यंह से
माना बाँध रखा है तूने
आस्तियों,मांस के लोथड़े से मुझको
मै तो मुक्त हूँ विचारों से
इन सब शरीर के अविकारों से
प्रकाश हूँ मै
ना कर पाया प्रकाशित तुझे
आने जाने वाले उस पथ के
अँधेरे गलियों के अंधकारों से
ना मेरा था ना ही वो तेरा था
मेरा तेरे धड़ में रैन बसेरा था
अब निठला रह जायेगा तू
जब मैं छोड़ चला जाऊँगा दूर
आ जा आना है तो
तू खुलकर आना पास मेरे
बांध ले जाना मुझे
मुझको मुझसे दूर यंह से
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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