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कल फिर


कल फिर

कल फिर
लोगों ने दिवाली बनायी
और मै फिर से
अँधेरे में रह गया

कल फिर
लोगों ने खुशियां मनाई
और मै फिर से
अपने गम के घेरे में बह गया

कल फिर
लोगों ने फटाके जलाये
और मै फिर से
उस सन्नाटे में रह गया

कल फिर
लोगों ने अपनापन दिखया
और मैं फिर
अपनों से पराया हो गया

कल फिर
बस उनका था
और मै फिर से
उस आज में खो गया

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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