दिल की धड़कन
धक धक करता रहा वो दिल
ना जाने वो किसके लिये
चुप चाप अकेले मरता रहा दिल
ना जाने वो किसके लिये
किसके लिए उसने सपने सजाये
किसके लिये उसने अपने बनाये
अपना बनाकर उन सपनो को
वो फिर भी पराये ही नजर आये
कभी सांस चली तेज कभी मध्यम
जोड़ती रही उसे वो दिल की धड़कन
शरीर को मेरे वो हलचल कराती रही
रिश्ते बनते रहे उसे वो निभाती रही
ऐसा ही चला उसका वो नित कर्म
भांति भांति मिले उसे वो हर कदम
अब तक था अकेला ना जान पाया
आना जाना है यंहा क्या उसने पाया
अकेले आया था अकेले जायेगा वो
गीता के सार को अनसुना कर गया वो
धड़कती रही फिजूल ही उम्र भर वो
धड़कना था उसे किस के लिए
किस के लिए धड़कती रही वो
किस के लिए धड़कती रही वो
किस के लिए धड़कती रही वो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ