वो चौराह
आम कि बात है
जीती क्या ? जनलोकपाल है
लोकपाल का जन-मण रहा
आम में ही मतभेद रहा
आम जागा था , ठगा रहा
खास सोया था पनपा रहा
कर आंदोलन क्या तूने पाया
आम चौराह पर फिर लौट आया
खेल है ये खेला सदियों से
शतरंज कि बिछी बिसात पर
राजनीती का अंत,वंहा शुरुवात है
आम क्या तेरी औकात है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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