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देख जमाने का


देख जमाने का

देख जमाने का चलन
मुझे देख चलना ना आया
छूटा देश देख मेरा दूर
मुझे देख पीछे मोड़ना ना आया
देख जमाने का चलन........

कितना बदला वो
या कितना मै बदल गया
चली थी पुरवाई पहड़ों से
समुद्र से क्यों रुसवाई हो गयी
देख जमाने का चलन........

वक्त का खेल था ये
बस मेरी तक़दीर का मेल था
बैठा था जवानी की रेल में
बुढ़पा आते आते क्यों फेल हो गयी
देख जमाने का चलन........

बस कर दुनिया कि नकल
गंवाई थी मैंने अपनी अक्ल
देखा सिर्फ शक्ल को
वो भी अब फना हो हो गयी
देख जमाने का चलन........

बस मै चला ....ना जाने किधर
क्या आपको पता
तो कृपा मुझे कर दो खबर
गुमनाम मै यूँ उम्रभर
देख जमाने का चलन........

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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