आज मै
आज
मै क्या लिखूं
सोचों या उसे
अभिभूत करों
कल्पना या यथार्त
में
आज मै क्या चुनों
उठाया सवेरे ने
आँखों ने मुझे चेताया
रात ने अंधेरा को छोड़ा
सात अश्वों का रथ वो दौड़ा
थोड़ा मैंने वंह से
थोड़ा मैंने यंहा से
समाचार पत्र के
उस प्रथम पन्ने पर
दिनांक और शनिवार
का अब मुझे ज्ञान हुआ
महिलाओं से डर लगा
था ये लिखा था
अश्वेत गांधी
भूमि क़ो छोड़ चला था
खिड़की में लगे पौधे ने
दिल को कुछ मेरे गुदगुदाया
हौले से धीरे से पास
उन्होंने मुझे अपने बुलाया
खिला था एक पुष्प
वंहा डाल पर तोड़ उसे मैंने
भगवान चरणों मे चढाया
जीना यही है ये उसने सिखाया
थोड़ा सुस्त हो
अपने विचारों से मै
दोपहर कि बाहों में
ले अंगड़ाई ली मेरी कलम
अब अपने उस खोल में
सोने को वो अब विवश
पन्नों का साथ छोड़ा मैंने
मन बिस्तर कि और दौड़ा
आज मै........?
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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