झूठ मेरा
झूठ मेरा वो आज कल
बढ़ता अब वो प्रति पल पल
पथ पथ बिछी है चालबाज़ी
झूठापन बयानों कि वो बयान बाजी
असत्य कि वो राहा खड़ी है
अभिसंधि से अब बात बड़ी है
मिथ्या का बड़ा व्यापार यंहा है
मुख बन्धनी कि फौज अड़ी और लड़ी है
ढकोसला मन का अब यंहा आचरण बना है
धोखा लड़ लड़ के हर आगन पड़ा-खड़ा है
कूट,छल कि वो कपट वंचना
हर संग हर अंग कि अब यही मन धारणा
प्रवंचना में धूर्तता कि वो लड़ी है
उन मोतियों के मनोविनोद से वो जुड़ी है
भिक्षावृति का वो नकलीपन
मिथ्याभाषण बना और पसरा वो बस जालीपन
तू भी फंसा है मै भी फंसा हूं
बस बढ़ता जा रहा वो झूठ का सम्राज्य
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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