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रंग उदासी का


रंग उदासी का

हर जुबां चुप है यंहा
जाने कैसा दुःख है यंहा
आंख ही रोती है क्यों
अश्क से भिगोती है क्यों
समंदर है खारा खारा यंहा
जिस कोर से निकली वो धारा वंहा
हर जुबां चुप है यंहा
जाने कैसा दुःख है यंहा

मन से उभर वो गीत है
दर्द भरा क्यों छेड़ा संगीत है
गा रहा है या वो रो रहा है
दूर जा रहा छोड़ उसका वो मीत है
चाह था उसने दिल से उसे
टूट है जो वो अब छलक रहा
हर जुबां चुप है यंहा
जाने कैसा दुःख है यंहा

कैसे उसको को मनाऊँ मै
बेवफा के प्रेम में बहता जाऊं मै
रोक ना अपने को पाऊँ मै
गम को अपने कैसे छुपाऊँ मै
नीर है अब वो थमता नही
रंग उदासी का अब उतरता नही
हर जुबां चुप है यंहा
जाने कैसा दुःख है यंहा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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